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सारांश
बहुत समय पहले की बात है। अरब देश में अलाउद्दीन नाम का एक गरीब बालक अपनी माँ के साथ एक छोटे से घर में रहता था। वे लोग बेहद गरीब थे । अलाद्दीन आलसी था और दिन भर गली-सड़क पर दोस्तों के साथ खेलता रहता था। एक दिन एक दुष्ट जादूगर उसके पास आकर बोला कि वह अफ्रीका से आया है और उसका चाचा है। अलाउद्दीन उसे अपने घर ले आया। अगले दिन जादूगर ने अलाउद्दीन को कुछ सुन्दर कपड़े खरीद दिया फिर वह उसे एक पहाड़ी के नीचे ले आया। वहाँ पर उसने लकड़ियों की सहायता से आग जलाया और जादू किया जिससे जमीन में एक बड़ा छेद हो गया। जादूगर ने अलाउद्दीन को अपनी अँगूठी दी । उसने कहा कि यह अँगूठी उसकी रक्षा करेगा। फिर उसने अलाउद्दीन से कहा कि वह सीढ़ियों से नीचे उतर उसे वहाँ पड़ा एक लैम्प ला दे। नीचे अलाउद्दीन ने देखा कि एक पेड़ पर ढेर सारे जवाहरात हैं। वह अपनी कमीज के अन्दर लैम्प रख चुका था। फिर वह जवाहिरात भी तोड़कर कमीज के अन्दर रखने लगा। जब वह ऊपर चढ़ा तो जादूगर ने उससे वह लैम्प माँगा। जवाहरात के नीचे दबे होने से अलाद्दीन वह लैम्प नहीं निकाल पाया तो जादूगर ने उस छेद को एक बड़े पत्थर से ढक दिया। अँधेरे में भयभीत अलाउद्दीन ने अपने हाथ रगड़े तो अँगूठी में से एक जिन्न निकला। उसने कहा कि वह उस अँगूठी का गुलाम है और वह उसकी कैसी भी हो मदद करेगा। जिन् की सहायता से अलाउद्दीन जमीन के बाहर आ गया। फिर वह खुश होकर सुरक्षित अपने घर को भाग गया ।