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सारांश
साबरा तरन्नुम जब मात्र तीन वर्ष की थी तो पोलियो ग्रसित हो गयी थी । तब से वह बैसाखियों के सहारे ही चल पाती थी। उसकी माँ उसे परिवार का भार समझती थी। साबरा ने स्कूल जाने की जिद की। लेखक जो कि एक स्कूल का शिक्षक था, उसने साबरा को कक्षा VI में दाखिला दिलवा दिया। वह उसे कुछ महान विकलांग लोगों की कहानियाँ सुना कर प्रेरणा प्रदान करता रहता था। स्कूल में साबरा एक विशेष छात्रा साबित हुई। वह एक कुशल चित्रकार और गायिका के रूप में भी उभरी। लेखक जब सेवानिवृत्त हुआ तो एक बार दुर्घटनाग्रस्त हो अस्पताल जा पहुँचा। वहाँ वह साबरा को एक डॉक्टर के रूप में देख चकित हुआ और खुशी भी। उसकी प्रेरणाओं ने असर कर दिखाया था। अब साबरा कृत्रिम अंगों के सहारे सामान्य रूप से चल फिर सकती थी।