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सारांश
वसंत के त्योहार के समय गाँव में एक मेला लगा था। एक छोटा बालक अपने माता-पिता के साथ उस मेले में घूम रहा था। वह उस मेले में कुछ खिलौनों के प्रति आकर्षित हुआ। उसने अपने माता-पिता से उनकी माँग की पर इनकार पाया। आगे उस बालक का मुँह मिठाइयों को देखकर पानी से भर आया पर यहाँ भी उसे इनकार ही मिला। फिर बैलूनों को देख उसका मन चटपटाया पर वह जानता था कि यह भी उसे नहीं मिलेंगे सो वह आगे बढ़ा। एक मदारी साँप को बाँसुरी बजा कर उसका खेल दिखा रहा था। उसे देख वह आगे बढ़ा तो एक झूला पर बच्चों को झूलते देखा। अब तो उसने हिम्मत कर माता-पिता से जोरों से झूले पर चढ़ने की माँग की। पर उसे कहीं भी माता-पिता नहीं दिखे। वह जोर से रोने • लगा। एक आदमी ने उसे रोते देख पुचकारा और उसे वह सब दिलाना चाहा जो वह चाहता था। पर, अब उसे कुछ भी नहीं चाहिए था। अब तो उसे सिर्फ अपने माता-पिता चाहिए थे ।