रथ यात्रा, एक ऐसा उत्सव जो ओडिशा के पुरी शहर को हर साल भक्ति और उल्लास के रंग में रंग देता है, हिंदू धर्म में सबसे पुराना और सबसे बड़ा रथ जुलूस माना जाता है। हजारों भक्तों की आस्था का केंद्र बिंदु भगवान जगन्नाथ (विष्णु या कृष्ण का एक रूप) होते हैं, जो अपने भाई बलभद्र, बहन सुभद्रा और अपने दिव्य चक्र सुदर्शन चक्र के साथ इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं। यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि पुरी की सांस्कृतिक विरासत और ओडिशा की कलात्मक परंपराओं का भी शानदार प्रदर्शन है। विशाल रथों का निर्माण, जो मंदिर के शिल्पियों द्वारा किया जाता है, एक वर्ष से भी अधिक समय ले सकता है। ये रथ न केवल आकार में विशाल होते हैं, बल्कि उन्हें जटिल नक्काशी और रंगीन कपड़ों से सजाया जाता है, जो उन्हें चलते-फिरते मंदिरों का रूप दे देता है। रथ यात्रा का मुख्य आकर्षण भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के तीन अलग-अलग रथ होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ, जिसे "नंदीघोष" के नाम से जाना जाता है, सबसे बड़ा और सबसे ऊंचा होता है, जिसमें 17 परंपरागत पहिये लगे होते हैं। बलभद्र का रथ, जिसे "तलध्वज" कहा जाता है, उससे थोड़ा छोटा होता है और इसमें 14 पहिये होते हैं। देवी सुभद्रा का रथ, जिसे "दरपदलन" कहा जाता है, सबसे छोटा होता है, जिसमें 12 पहिये होते हैं। रथ यात्रा से जुड़े अनुष्ठान भी प्राचीन परंपराओं में निहित हैं। रथों को जगन्नाथ मंदिर से बाहर निकालने से पहले, एक विशेष पूजा ("राजगुरु द्वारा राजा को निमंत्रण") की जाती है, जो यह दर्शाता है कि भगवान को यात्रा के लिए राजा से अनुमति मिल रही है। जब रथों को मंदिर से बाहर निकाला जाता है, तो हजारों भक्त "जय जगन्नाथ" के नारे लगाते हुए रथों को खींचने के लिए रस्सियों (रस्सी) को पकड़ लेते हैं। यह दृश्य, जो भक्ति और सामूहिक उत्साह का प्रतीक है, देखने लायक होता है। रथ यात्रा का मार्ग जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक जाता है, जो माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की मौसी का निवास स्थान है। रथ नौ दिनों तक गुंडीचा मंदिर में रहते हैं, जिस दौरान भक्तों के लिए विशेष दर्शन होते हैं। नौ दिनों के बाद, रथों को वापस जगन्नाथ मंदिर ले जाया जाता है, जिसे "बाहुदा यात्रा" के नाम से जाना जाता है। रथ यात्रा से जुड़ी कई लोककथाएँ और मान्यताएँ हैं। कुछ का मानना है कि रथों को खींचने से व्यक्ति को पुण्य और सौभाग्य प्राप्त होता है। अन्य लोग मानते हैं कि यह यात्रा पृथ्वी पर भगवान के अवतरण का प्रतीक है। बहरहाल, रथ यात्रा सिर्फ एक धार्मिक उत्सव से कहीं अधिक है। यह एक सांस्कृतिक उत्सव है, जो विभिन्न जातियों, धर्मों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है। यह उत्सव भाईचारे, सद्भाव और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण का प्रतीक है। रथ यात्रा की धूमधाम, भक्ति का माहौल और रंगीन जुलूस न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में देखने लायक होता है।